Monday 2 January 2012
एक बेहद पठनीय संग्रह
विजय बहादुर सिंह की प्रतिक्रिया: कुछ अंशः
आपकी कविता-पुस्तक मिली। उलट-पुलट गया। कविताओं को पढ़ते हुए जो नये अनुभव-समूह और विचार-तरंगें हैं, वे अच्छी लगती हैं, बावजूद अपनी अनगढ़ताओं के। हां, 'हावड़ा ब्रिज' जैसी रचनाएं आपकी काव्य-प्रतिभा की ताकत और संभावनाओं की ओर इशारा करती है तथापि डायनासोर वाली कल्पना से न जाने क्यों मन सहमत नहीं हो पा रहा है।
संग्रह की कविताओ में पढ़ा ले जाने का आकर्षण है, यह मैंने महसूस किया है। यह भी कि आपका कवि स्वाधीन है और किसी आग्रह से पहले से बंधा नहीं है। यही आपका सौन्दर्य है जो जीवनानुभवों के प्रति हमारा ध्यान खींचता है। पाठक की एकरसता और काव्य-ऊब टूटती है।
यह भी आप अच्छा कर रहे हैं जो मुक्तवृत्तों को संगीतात्मक लयात्मकता की ओर ला रहे हैं। कतिपय नये शब्द-प्रयोग, जैसे 'संवाद रहित ठंडक' (पृष्ठ 64), 'अर्ध विराम' का सरलीकरण (पृष्ठ 30), 'नुकीले संतोष' (31), 'मुलायम आस्वाद' (31)। मुझे ये पंक्तियां खूब मार्मिक लगीं-'खेतों को कितना सालता होगा बैलों का अभाव'(58)। सबसे पसंद आयी कविता-'निहितार्थ के लिए'। पर यह और भी अच्छा लगा कि आपने एक कवि के रूप में अपनी संवेदना की आंखें खोल रखी है और वे अपने अनुभवों की ताज़गी से भरी हुई हैं। बधाई। बहुत सारे संग्रहों में यह एक बेहद पठनीय संग्रह है।
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