Sunday 22 January 2012

बीते पलों की तलाश

               समीक्षा
  • -लोकेन्द्र बहुगुणा
बीता हुआ कल चाहे कितना ही कष्टप्रद रहा हो लेकिन उसकी स्मृति झेले हुए उन तमाम कष्टों के बावजूद एक अनिर्वचनीय सुख देती है‎। वर्तमान के झरोखे से अतीत को तलाशती अभिज्ञात की कविताएं ऐसा ही अहसास कराती हैं‎। बीते दिनों की याद को ताजा करने वाला अभिज्ञात की कविताओं का संग्रह 'खुशी ठहरती है कितनी देर' आत्मकेंद्रित व्यस्तताओं के इस दौर में तेज होते जा रहे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं, समय के साथ बदली जरूरतों और सामाजिक मूल्यों के अंर्तद्वंद को बड़े खूबसूरत अंदाज में पेश करता है‎। 'वापसी', 'इंतजार' और बेटी को इंगित पांच कविताएं 'होली', 'संवाद', 'स्वरलिपियां', 'तुमसे' और 'उपलब्धि' तेजी से बदलते परिवेश के प्रति सजग दृष्टि के बावजूद दर्शाती हैं कि कवि 'नॉस्टैलजिया' में उन सामाजिक मूल्यों से टकराव का अंर्तद्वंद झेल रहा है जो उसे विरासत में मिले हैं।
अभिज्ञात की कविताएं उनके इस आत्मकथ्य को प्रतिबिंबित करती हैं, 'कविता के लिए विचार मुझे आवश्यक लगता है मगर खालिश विचार को कविता नहीं मान पाता‎। कविता में भावुकता दिखनी चाहिए और विचार केवल उसे संचालित, संयमित या दिशा-निर्देश देने वाला तत्व भर हो‎। कविता के लिए भावुकता को मैं विचार से कम मूल्यवान नहीं मान पाता हूं‎।' सहज अभिव्यक्ति इन कविताओं को विशिष्टता प्रदान करती हैं‎। हर कथ्य हमारे इर्दगिर्द मौजूद लगता है जिनसे हम आये दिन दो-चार होते रहते हैं‎। स्मृति पटल पर वे दृश्य ताजा हो जाते है जो अभिज्ञात ने इन कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त किये हैं‎ý
'हावड़ा ब्रिज' कलकत्ता यानी कोलकाता की पहचान भर नहीं है वरन अपने निर्माण के समय से रचनाकारों का पसंदीदा विषय रहा है‎। रचना के हर माध्यम में चाहे व कहानी, कविता या फिल्म हो हावड़ा का पुल बंगाल की समसामयिक घटनाओं का प्रतिनिधि रहा है‎। अभिज्ञात ने हावड़ा ब्रिज के माध्यम से पश्चिम बंगाल के मिजाज और इसके खासतौर से कोलकाता के दैनिक परिवेश काफी सहज ढंग से प्रस्तुत किया है‎। खुशी पाना या खुशी पाने का प्रयास करना स्वाभाविक प्रवृति है‎, खुशी जीने का मकसद भी देती है जैसा कि 'खुशी ठहरती है कितनी देर' में कहा भी गया है, ' शायद खुशी की तलाश में जी जाता है आदमी पूरी - पूरी उम्र‎।' शायद यही वजह है कि अभिज्ञात ने पुस्तक के नाम के लिए इसी कविता को चुना‎। यह संग्रह इसलिए भी दिलचस्प है कि इसमें संकलित कविताएं न केवल सहज अंदाज में वर्तमान का चेहरा पेश करती हैं वरन यह अहसास कराने की कोशिश भी करती हैं कि भूमण्डलीकरण की प्रतिस्पर्धा आम आदमी के सपनों और चाहतों को बड़ी बेदर्दी से लील रही है।
पुस्तक : खुशी ठहरती है कितनी देर
लेखक : अभिज्ञात
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
मूल्य : 50.00 रुपये
पृष्ट : 88

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